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ख्वाब भी तेरे,
रौशनी भी तेरी,
हुस्न भी तेरा,
तिश्नगी भी तेरी।
एक मैं ही अधूरा,
शाम-ए-महफ़िल में,
ज़ुल्फ़ भी तेरी,
सादगी भी तेरी।
तू मिले या ना मिले,
इबादत मैं करूँ,
अब सिर्फ तेरी।
Khwab bhi tere,
Raushni bhi teri,
Husn bhi tera,
Tishnagi bhi teri,.
Ek main hi adhoora,
Shaam-ae-mehfil mein,
Zulf bhi teri,
Saadgi bhi teri.
Tu mile ya na mile,
Ibadat main karun,
Ab sirf teri.
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.10.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3505 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति इस मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteक्या बात 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteख़ुदा का ही दिया है सब। हम बस इबादत करते हैं वो भी उसकी है।
यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब .....,सादर नमन
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत उम्दा/शानदार।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।