कलम का जोर कब तक दिखाओगे तुम,
स्याही खत्म होने के बाद उसे भुलाओगे तुम,
खत्म कर दो दास्ताँ बंद करो ये कहानी,
बिखरे हुए पत्तों को कब तक जलाओगे तुम।
Kalam ka jor kab tak dikhaoge tum,
Syahi khatm hone ke baad use bhulaoge tum,
Khatm kar do dastan band karo ye kahani,
Bikhre huye patton ko kab tak jaaoge tum.
©नीतिश तिवारी।
ये भी देखिए।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को "झूठ रहा है हार?" (चर्चा अंक- 3482) पर भी होगी। --
ReplyDeleteचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री रामनवमी और विजयादशमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह बहुत खूब थोड़े में बड़ी बात।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।