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क्यों करता रहा सौंदर्य की साधना?

सौंदर्य की साधना
Pic credit: Pinterest.










सौंदर्य की साधना।

काली घटा है घनघोर,
बिजली का भी है शोर,
सियाह-रात ऐसी है कि,
मन व्याकुल है विभोर।

पंख नहीं है उड़ने को,
होश नहीं है चलने को,
वो लथपथ है हुआ बेहाल,
साँस आयी है रुकने को।

पथ पर चलना गिरकर उठना,
करता रहा सौंदर्य की साधना,
आँसू उसके ऐसे बहते,
जैसे कोई गिरता हुआ झरना।

कर्म की ज्योत जलाने को,
निकला था भवसागर पार,
भाग्य की रेखा ऐसी पलटी,
खत्म हो गया जीवन संसार।

©नीतिश तिवारी।

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17 Comments

  1. बहुत सुंदर रचना

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  2. वाह बेहद खूबसूरत

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  3. गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
    वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो, घुटनों के बल चलें.
    गिरना-पड़ना, उठना-बैठना तो लगा ही रहता है.
    तू उत्थान-पतन की चिंता किए बिना सौन्दर्य की साधना में यूं ही लगा रह !

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  4. रचना साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को    "आज नहाओ मित्र"   (चर्चा अंक- 3517)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  6. सौन्दर्य साधना य प्रेम साधना आसान कहाँ होती है ...
    बहुत ही भावपूर्ण उदगार मन के ...

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    1. सही कहा आपने। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  7. बहुत बढ़िया!!!!

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  8. बहुत ही भावपूर्ण रचना।

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  9. बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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