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गीत।
मैं भी अधूरा जीने लगा हूँ,
तेरे ही खयालों में,
बढ़ने लगी है उलझन मेरी,
तेरे ही सवालों में।
तुझे पाने की चाहत मेरी,
अपना बनाने की आदत मेरी,
बड़ी मुश्किल है कैसे बताएँ,
तू ही है अब राहत मेरी।
मैं भी अधूरा...
जीना मैं तो तुझसे सीखा,
हर बारिश में मैं हूँ भीगा,
चैन मुझे मिल जाए अब तो,
दर्द लगे है अब ये मीठा।
मैं भी अधूरा ....
©नीतिश तिवारी।
18 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवावार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteप्रेम और समर्पण का सुन्दर समागम.
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
सादर
आपका धन्यवाद।
Deleteबहुत बढ़िया...!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
Deleteआदरणीय नीतीश जी, ख्याल जब खूबसूरत हो तो उलझणें कैसी, तन्हाई क्यूँ? साथ पाना हो त खुद को उनमें खोना होता है। सुन्दर ख़्यालों को बुनती खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने। धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया।
DeleteAti sundar Rachna
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।