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तुम्हारी ख्वाहिशें और मेरे सपने।
सर्दी नहीं पड़ रही है इस बार, जानती हो क्यों? क्यूँकि हमारे रिश्तों में गर्माहट नहीं है। तुम्हारे खयाल, तुम्हारी ख्वाहिशें, तुम्हारे उसूल, सब वाज़िब हैं। लेकिन मेरे सपनों की तिलांजली देकर तुम्हें ख़्वाब देखने का कोई हक़ नहीं है। मेरे अरमानों की चिता जलाकर तुम अपनी ख्वाहिशें पूरा नहीं कर सकती। रेल की पटरियों की तरह बनने की कोशिश मत करो। बनना है तो समंदर बनो जिसमें तुम्हारी ख्वाहिशों की गहराई होगी और उस गहराई में डूबकर मैं अपने सपनों को पूरा कर सकूँगा। बस इतना ही।
Love You
12 Comments
Kya baat hai.
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (22-11-2019 ) को ""सौम्य सरोवर" (चर्चा अंक- 3527)" पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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-अनीता लागुरी'अनु'
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसमुन्दर बनो जहाँ डूबा जा सके ...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है ...
आपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।