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सम्बन्ध विच्छेद
करोगे तुम तो
प्रेम प्रगाढ़
कैसे होगा।
पूनम की रात
आ गयी है
ये जिस्म
एक जान
कैसे होगा।
तुम्हें जो भी
शिकायत है
उसे टाल दो
थोड़ी देर को।
ये शब आज
बर्बाद ना करो
रुक जाने दो
घड़ी के फेर को।
हठ लगाए बैठे हो
ना जाने कौन सी
ज़ुल्म-ओ-सितम की
मैं उसे भी सुन लूँगा
पर ये घड़ी है
सुखद मिलन की।
कितनी सदियाँ बीत गयी
उसके बाद तो आये हो
नखरे भी तेरे सह लूँगा
क्योंकि तुम ही
रूह में समाये हो।
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
वाह! बहुत खूब!
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-11-2019) को ""हुआ बेसुरा आज तराना" (चर्चा अंक- 3511) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका धन्यवाद।
Deleteलाज़वाब प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर भइया, इसी तरह लिखते रहे
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।