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तेरी आँखों के काजल को स्याही बनाके लिख दूँ,
मैं अपनी ग़ज़ल में तुझको हमराही बनाके लिख दूँ।
तेरी पायल करती शोर है हम जब भी मोहब्बत करते हैं,
इस पायल की छन छन को गवाही बनाके लिख दूँ।
चाँद करता रहता है पहरा, पूर्णिमा की रात को,
तुम कहती हो तो चाँद को सिपाही बनाके लिख दूँ।
गुनाह है मोहब्बत में अगर छुप छुप कर मिलना,
फिर मैं भी अपने को अपराधी बनाके लिख दूँ।
©नीतिश तिवारी।
Also Read: मेरी पहली किताब- फिर तेरी याद आई।
3 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 10 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद सर।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।