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Laghukatha- Naseeb Apna Apna

Naseeb apna apna

Pic credit: Pinterest.












"असलम भाई एक चाय देना।" 
दिसम्बर की ठंड में सुबह 6 बजे मैंने काँपते हुए कहा।
"ये लीजिए तिवारी जी।"
"अरे बिस्कुट भी तो दो।"
"कौन सा?"
"वही अपना पुराना वाला पर्लेजी।"
चाय की पहली घूँट लेकर मैं बिस्कुट का रैपर फाड़ ही रहा था कि उधर से एक मोहतरमा बैग लटकाए और गले में आई कार्ड डाले आई। 
शायद ऑफिस जा रही थी।
"भईया एक मर्बोलो लाइट्स और एक चाय"
मोहतरमा ने असलम भाई से माँगा।
असलम भाई के लिए ये बिल्कुल नया नहीं था और होता भी तो वो दुकानदार थे इसलिए उन्होंने सिगरेट और चाय पकड़ा दिया। 
मैं भी इधर चाय की चुस्की के साथ व्यस्त हो गया था।
इतने में एक कुत्ता भौंकते हुए मोहतरमा की तरफ आया। शायद पुरानी जान पहचान रही होगी। लड़की कुत्ते को पुचकारने लगी तब तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि पुरानी जान पहचान ही थी।
लेकिन कुत्ता फिर भी भौंके जा रहा था।
लगभग दो मिनट बाद लड़की ने असलम से गुड डे बिस्कुट माँगा और कुत्ते को खाने के लिए सड़क पर बिखेर दिया। उधर कुत्ता बड़े चाव से बिस्कुट खाने लगा। लड़की सिगरेट फूँक कर जा चुकी थी। मैं और असलम भाई मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

©नीतिश तिवारी।

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