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वो दरख्तों से आती थी हवा के झोंके,
तुम्हारी खुशबू अब उनमें आती नहीं,
वो यादें जो दिल में बसेरा कर गयी हैं,
मेरे दिल से कभी अब वो जाती नहीं।
वो फूलों का खिलना भौरों का मचलना,
वो बगीचे की मिट्टी की सौंधी सी खुशबू,
जब से गयी हो तुम ऐसा हुआ है,
वो कोयल भी अब गीत गाती नहीं।
©नीतिश तिवारी।
3 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteBeautiful !!
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।