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मैं लिख दूँगा
अपनी आँखों से
गिरते हुए आँसुओं
की धार के
बहने का प्रवाह।
मैं लिख दूँगा
बिस्तर में पड़ी
हुई सिलवटों को
सीधी करने में
गुजरी रात स्याह।
तुम अपने मस्करा
लगे खूबसूरत आँखों
को जरा तकलीफ़ देना
पढ़ने को मेरी
दास्तान-ए-हिज़्र।
मैं लिख दूँगा
अपने को सम्पूर्ण
संसाधनों से परिपूर्ण
व्यक्तित्व होने के
बावजूद तुमसे कभी
ना मिल पाने वाली
प्रेम करने की चाह।
©नीतिश तिवारी।
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13 Comments
बहुत सुन्दर रचना नीतीश जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१६ -0२-२०२०) को 'तुम्हारे मेंहदी रचे हाथों में '(चर्चा अंक-१३३६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
आपका धन्यवाद।
Deleteओहो अंत में कश बिठा दिया भाई साब.
ReplyDeleteजबरदस्त.. मस्त लेखनी है आपकी.
आपके ब्लॉग पर पहलीबार आना हुआ है... आप कमाल के लिखते हैं.
मन को छूने वाली कलम है आपकी.
आप भी आइये मेरे ब्लॉग तक.
आइयेगा- प्रार्थना
धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।