एक तमन्ना तुम्हें गुलाब देने की,
एक झिझक तुम्हारे मना करने की,
साल दर साल गुजरते गए,
कई गुलाब खिले कई मुरझा गए,
पर ख्वाहिश आज भी जिंदा है,
कि इस बार तुम्हें गुलाब दे ही दूँ,
इस बार तुम्हें कह ही दूँ,
कि मेरा प्यार किसी दिन,
का मोहताज नहीं।
Ek tamanna tumhe gulab dene ki
Ek jhijhak tumahre mana karne ki
Saal dar saal gujarte gaye
Kai gulaab khile kai murjha gaye
Par khwahish aaj bhi zinda hai
Ki iss baar tumhe gulab de hi du
Iss baar tumhen kah hi du
Ki mere pyar kisi din
Ka mohtaz nahin hai
©नीतिश तिवारी।
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6 Comments
बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Delete.. वाह मन में हौसले और कभी ना खत्म होने वाला जोश हो तो एक कवि ऐसी ही खूबसूरत रचनाओं का सृजन करता है..।
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया आपने बधाई
.. वाह मन में हौसले और कभी ना खत्म होने वाला जोश हो तो एक कवि ऐसी ही खूबसूरत रचनाओं का सृजन करता है..।
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया आपने बधाई
आपका शुक्रिया।
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