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गाँव में रहूँ
तो शहर की
याद आती है
शहर में रहूँ
तो गाँव की
याद सताती है
इन दो यादों के बीच
मैं तुम्हें फोन कर लेता हूँ
और मेरी शाम यूँ ही
गुजर जाती है
Gaon mein rahu
Toh shahar ki
Yaad aati hai
Shahar mein rahu
Toh gaon ki
Yaad satati hai
Inn do yadon ke beech
Main tumhen phone kar leta hu
Aur meri shaam yu hi
Gujar jaati hai
©नीतिश तिवारी।
14 Comments
बहुत सही
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteवाह!!!!
ReplyDeleteक्या बात....
बहुत लाजवाब।
बहुत शुक्रिया।
Delete
ReplyDeleteबहुत खूब..... ,सादर नमन
आपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।