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प्रेम की कविताओं
को पढ़ते वक्त तुम
ढूँढ लेते हो शृंगार रस
के दोनों प्रकार
संयोग शृंगार और
वियोग शृंगार।
बस नहीं ढूँढ पाते तो
उस प्रेम का अस्तित्व
जो एक स्त्री तुमसे
करती है निःस्वार्थ
ये जाने बिना कि उसे
संयोग मिलेगा या वियोग।
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
सटीक प्रश्नावली।
ReplyDeleteआपका जवाब नहीं।
धन्यवाद सर। आपके सानिध्य में ही सब कुछ सीखा है।
Deleteसुंदर विवेचना
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteनीतिश तिवारी जी,
ReplyDeleteसादर नमस्ते
बस नहीं ढूँढ पाते तो
उस प्रेम का अस्तित्व
जो एक स्त्री तुमसे
करती है निःस्वार्थ
सदियों से भटकता ये प्र्श्न, मगर उत्तर नहीं मिला कभी , जाने मिले भी के नहीं। .. बहुत आसान भाषा में बहुत गहरी बात कही। ... गहरी रचना
कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जनो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे।
बहुत बहुत धन्यवाद। आप भी अपना ख्याल रखिए।
Deleteबहुत ही खूबसूरत लिखतें हैं आप हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।