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स्याही को अपना बनाया,
शब्दों को हमराही,
तब जाकर निकली है,
अच्छी भली एक शायरी।
काव्य में उपजे भाव को,
सम्मान देता है रचयिता,
तब जाकर बनती है,
सुंदर सी एक कविता।
मोहब्बत में पड़ती है,
जब जब कोई खलल,
बना लेते हैं हम भी,
दर्द भरी एक ग़ज़ल।
सबके पास होता है,
कहने को कुछ जवानी में,
फिर किरदार उभरकर आते हैं,
उस शख्स की कहानी में।
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(03-07-2020) को
"चाहे आक-अकौआ कह दो,चाहे नाम मदार धरो" (चर्चा अंक-3751) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteमन के भाव जो सरलता से व्यक्त कर सके ,वही सच्चा कवि होता है।
आभार आपका।
Deleteबढ़िया नीतीश जी
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब,सादर नमन
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteक्या बात है ,बहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।