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उसकी प्रतिमा के प्रतिबिम्बों से,
धधक रही थी ऐसी ज्वाला।
शूरवीर था वह योद्धा था,
उठा लिया था उसने एक भाला।
दुश्मन की छाती पर चढ़के,
नृत्य सदा करने वाला।
एक समय ऐसा भी आया,
रक्तरंजित शरीर कर डाला।
अपनी भुजाओं के दम से,
उसने खोला जंज़ीर का ताला।
भस्म हुए हैं लोग कहर से,
सबका शरीर पड़ गया है काला।
बाहुबली है कहते उसको,
वो है कितनों का रखवाला।
युद्धभूमि फ़तह किया है जिसने,
उसको पहनाते हैं फूलों की माला।
©नीतिश तिवारी।
14 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवीर रस से भरी कविता
ReplyDeleteजी बहुत दिनों के बाद वीर रस लिखने की कोशिश किया है।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Delete
ReplyDeleteवीर रस से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह बेहतरीन
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह बहुत सुंदर काव्य!
ReplyDeleteवीरोचित सुंदर शब्दावली।
आपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।