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हम सभी के प्यारे,
महेन्द्र सिंह धोनी जी।
सादर प्रणाम।
कल स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2020 के मौके पर आपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास की घोषणा करके दुनिया में आपके करोड़ों चाहने वालों को स्तब्ध कर दिया। आप लेफ्टिनेंट कर्नल हैं, शायद इससे अच्छा दिन हो भी नहीं सकता था। लेकिन मेरा ही नहीं बल्कि करोड़ों देशवासियों की दिली ख्वाहिश है कि कमसे कम एक भव्य विदाई मैच तो बनता था। हालांकि बिना किसी शोर शराबे के आपने सिर्फ़ एक इंस्टाग्राम पोस्ट से सन्यास की घोषणा करके एक बार फिर से साबित कर दिया है कि आप कितने महान हैं।
आपके चाहने वाले करोड़ों फैन्स की तरह मैं भी गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि मैंने धोनी युग देखा है।
वैसे तो धोनी युग की शुरूआत 2004 में ही हो चुकी थी लेकिन तब शायद आपके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण का दौर था, उस वक़्त किसी ने नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय में आप भारत के सबसे सफल कप्तान ही नहीं बल्कि अब तक के बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाज भी साबित होंगे। किसी ने नहीं सोचा होगा कि सचिन तेंदुलकर के वर्ल्ड कप जीतने का सपना आप अपनी कप्तानी में पूरा करेंगे। खैर, आपके क्रिकेट करियर की दास्तान लिखने बैठूँगा तो शायद शब्द कम पड़ जाएँगे।
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बात करूँगा कि कैसे अपने विलक्षण प्रतिभा के दम पर आपने मेरे दिल में जगह बनाई है। 2004-05 का वो दौर जब पहली बार 148 रन करने पर लोगों ने आपका नाम जानना शुरू किया था। जब आपने 148 रन किया उस समय मैं 11th में था। रोज की तरह दोपहर में स्कूल से लौट कर आया तो पता चला कि कोई झारखंड का खिलाड़ी धोनी है जिसने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी किया है। कसम से सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। मेरठ में रह रहे अपने दोस्तों से मैं गर्व से कहने लगा कि देखो , हमारे झरखण्ड में भी टैलेंट है। 148 वाला मैच मैं लाइव नहीं देख पाया था लेकिन हाइलाइट्स देखा और उसके बाद आपके चौकों और छक्कों की ऐसी लत लगी कि जहाँ भी टीवी पर आप बल्लेबाजी करते दिखते, मैं वहीं रुककर देखने लगता था। श्रीलंका के खिलाफ 183 की आपकी पारी खड़े खड़े चाय की दुकान पर लगे टीवी में देखकर जो आनंद आया, वो अविस्मरणीय है। फिर 2007 का T20 वर्ल्ड कप और उसके बाद सब इतिहास है।
अगर दादा ने टीम को लड़ना सिखाया तो आपने टीम को जीतना। खिलाड़ी कई आये और कई गए लेकिन आपके टैलेंट, लीडरशिप और निर्णय क्षमता का कोई विकल्प नहीं हो सकता। आपके जाने के बाद टीम को सिर्फ़ फिनिशर की कमी नहीं खलेगी बल्कि एक ऐसे कप्तान की कमी खलेगी जो मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख पाता था।
एक बार आपके मैनेजर और दोस्त श्री अरुण पांडेय जी को सुन रहा था। वो बता रहे थे कि मैदान पर आपके दिमाग में सिर्फ क्रिकेट रहता है और मैदान से बाहर क्रिकेट की कोई चर्चा नहीं करते। पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में सामंजस्य बैठाने का इससे बेहतरीन उदाहरण कुछ नहीं हो सकता। क्रिकेट की आपकी समझ से हम सभी वाकिफ़ तो हैं ही, इतने दिनों में हमने ये भी जाना है कि कैसे आपने अपने जीवन में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मुक़ाम को हासिल किया। छोटे शहरों से बड़े स्टार निकल सकते हैं, इसका श्रीगणेश करने वाले आप ही हैं।
हर बार ट्रॉफी लेते समय आप युवाओं को आगे कर देते थे। अपनी मर्जी से आपने कप्तानी छोड़ी और अब संन्यास भी ले लिया। अपने वीडियो में जिस तरह से आपने अपने करियर के अहम पड़ाव को अपने साथी खिलाड़ियों के तस्वीर के साथ जगह दिया है वो ये दर्शाता है कि आप सच्चे लीडर है और रहेंगे।
लम्बे अंतराल के बाद IPL 2020 में आपको देखना एक सुखद अनुभव होगा।
आपकी आगामी योजनाओं के लिए शुभकामनाएँ।
जोहार!!!
नीतिश तिवारी।
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8 Comments
धोनी एक अविस्मरणीय छवि छोड़ गए हैं। उनकी सिनेमाई छवि असली दुनिया छोड़ गई और वे क्रिकेट की दुनिया। हम सब मरहूम हैं। नमन।
ReplyDeleteउम्मीद है कि क्रिकेट की अपनी knlowdge को वो युवाओं में स्थानांतरित करेंगे।
Deleteदोनी महान क्रिकेटर हैं।
ReplyDeleteएक समय के बाद रिटायर तो सबको होना ही पड़ता है।
जी, बिल्कुल सही कहा आपने।
Deleteयह सही है कि धोनी उम्दा खिलाड़ी रहा ! इसमें दो राय नहीं है। पर टीम में पैर जमते ही उसने जो राजनीती की वह भी जग जाहिर है। एक-एक कर अपने से वरिष्ठ खिलाड़ियों को जैसे टीम से बाहर किया उससे सभी जगह असंतोष तो घिरा ही, टीम भी टुकड़ों में बंट गई थी ! तत्कालीन विवादित बोर्ड प्रमुख और उनका ख़ास नाता था। तभी उन्हें इंडिया सिमेंट का वाइस प्रेसीडेंट नियुक्त किया गया जिसका प्रबंधन बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के हाथों था। यदि श्री निवासन का वरद हस्त इनके सर पर ना होता तो, एक चयन करता के अनुसार, 2012 में ही इनका बाहर जाना तय होगया था। इसके साथ ही वह मैच तो शायद ही कोई भूले जो 24 फ़रवरी 2010 को ग्वालियर में साउथ अफ्रीका के साथ खेला गया था ! क्रिकेट के एक दिवसीय खेलों के इतीहास में पहला दोहरा शतक खेल के मैदान की सीमा रेखा पर आ खड़ा हुआ था पर रोकने पर उतारू था धोनी !
ReplyDelete48वें ओवर तक सचिन 199 रन बना चुके थे। पर अगला पूरा ओवर धोनी ने खेला। पचासवें ओवर की भी शुरुआत धोनी ने करनी थी। उसने पहली बाल सीमा रेखा के पार भेजी. दूसरी का भी वही हश्र होता यदि सीमा रेखा पर पकड़ ना ली जाती। धोनी ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यदि ऐसा होता और तीसरी बाल पर रन ना बन पाता तो? या एक-दो बाल की हड़-बड़ी में सचिन से एक रन ना बन पाता तो? पूरी आठ बाल धोनी ने अपने पास रखीं, क्या यह ठीक नहीं होता कि पहले दूसरा शतक पूरा करवा लिया जाता?
कुछ भी हो सकता था। जो किर्तीमान बनने वाला था वह अकेले सचिन का नहीं था, उसमें देश का भी नाम जुड़ा हुआ था। तो धोनी महाशय को नहीं चाहिये था कि पहले सचिन को मौका दे किर्तीमान पूरा कर लिया जाए। ऐसा भी नहीं था कि रनों का अकाल पड़ा हुआ था तो उसे प्रमुखता दी जाती। चलिए अंत भला तो सब भला, पर इस तथाकथित महान धोनी के मन में शायद कुछ और ही था।
राजनीति से कोई नहीं बच पाया है। लेकिन आप भूल रहे हैं कि सचिन को वर्ल्ड कप का गिफ्ट धोनी ने ही अपनी कप्तानी में दिया। सौरव गांगुली को आखिरी मैच में कप्तान बनाया। विराट के लिए खुद कप्तानी छोड़ी। हिंदुस्तान को सारे कप दिलवाए। अगर सचिन क्रिकेट के भगवान हैं तो धोनी छोटे मोटे देवता तो हैं ही।
Deleteउसको गांगुली से ''introduce'' भी सचिन ने ही करवाया था ! और फिर निरपेक्ष रह कर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ''फौज'' कैसी थी, विजेता बनते समय ! !
Deleteफ़ौज भले ही अच्छी ही लेकिन जब तक उसका नेतृत्व काबिल शख्स के पास नहीं होगा, जीतना कठिन होता है।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।