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सिर्फ़ पा लेना ही प्यार नहीं, उसे मरते दम तक चाहना भी प्यार है। ये बात कहने वाले ये नहीं समझ पाते कि उस चाहत में तड़प ज्यादा होती है। तड़प होती है किसी और के लिए उसे मुस्कुराते देखते हुए। तड़प होती है जब वो किसी और की बाहों से लिपटकर उससे मोहब्बत करती है। चाहत और मोहब्बत के बीच के फर्क को सिर्फ़ वो आशिक़ बयाँ कर सकता है जिसने आठों पहर, बारह मास, अब भी उसे पाने के ख़्वाब देखता है। आशिक़ को फर्क ही नहीं पड़ता कि वो किसी और की हो चुकी है। शायद इसलिए कि उसने
उसे तन से तो जुदा हो जाने दिया लेकिन अपने मन से कभी निकाल नहीं पाया। भूलकर करता भी तो क्या? इश्क़ का नाम अगर भूलना होता तो इश्क़ की दास्तानें ना होतीं। वफ़ा अगर इतना खुदगर्ज़ होता तो आशिक़ इतने दिवाने ना होते।
©नीतिश तिवारी।
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@poetnitish
2 Comments
वाह...।
ReplyDeleteबहुत खूब।
आपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।