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बात करने से ही तो बात होती है,
तुम आना इधर फिर मुलाक़ात होती है,
इंतज़ार करते करते एक अरसा बीत गया,
क्या ऐसी ही मोहब्बत की सौगात होती है।
Baat karne se hi toh baat hoti hai,
Tum aana idhar phir mulaqat hoti hai,
Intzaar karte karte ek arsa beet gaya,
Kya aisi hi mohbbat ki saugaat hoti hai.
दर्द के बिस्तर पर,
गम की चादर ओढ़कर,
तुम्हारे बेवफ़ाई के तेवर को सुला दिया,
कल चाँदनी रात में,
चाँद का दीदार करके,
तुम्हें हमेशा के लिए भुला दिया।
Dard ke bistar par,
Gham ki chadar odhkar,
Tumhre bewfai ke tewar ko sula diya,
Kal chandni raat mein,
Chaand ka didaar karke,
Tumhen humesha ke liye bhulaa diya.
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
वाह, बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।