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बेबसी का ये आलम,
बिन बारिश का ये सावन,
हक़ अदा करें भी तो कैसे,
रूठ गया है मोरा साजन।
Bebasi ka ye aalam,
Bin barish ka ye savan,
Haq ada karen bhi toh kaise,
Rooth gaya hai mora sajan.
पिछली दीदार के खूबसूरत लम्हों को आँखों में सजाए रखते हैं,
हम उनसे मुलाक़ात के इंतज़ार में अपनी पलकें बिछाए रखते हैं,
वो घड़ी मोहब्बत की, वो उनके चेहरे का भोलापन,
हर रोज दिल में एक मिलन की आरज़ू जगाए रखते हैं।
Pichhli deedar ke khoobsurat lamhon ko aankhon mein sajaye rakhte hain,
Hum unse mulaqaat ke intzaar mein apni palken bichhaye rakhte hain,
Wo ghadi mohabbat ki, wo unke chehre ka bholapan,
Har roj dil mein ek milan ki aarzoo jagaye rakhte hain.
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-12-2020) को "मैंने प्यार किया है" (चर्चा अंक- 3914) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।