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मुलाक़ातों के दौर का ख्वाब देखा था हमने,
उनके लिए हर रंग का गुलाब रखा था हमने,
रश्क इतना कि वो हमारे मैय्यत पर भी ना आए,
जनाज़े के बगल में ख़त का जवाब रखा था हमने।
Mulaqaton ke daur ka khwab dekha tha humne,
Unke liye har rang ka gulaab rakha tha humne,
Rashk itna ki wo humare maiyyat par bhi naa aaye,
Janaje ke bagal mein khat ka jawab rakha tha humne.
उस बेवफ़ा का आज भी मैं एहतराम करता हूँ,
अपनी शायरी में 'उसका' नहीं, 'उनका' लिखता हूँ।
Us bewfa ka aaj bhi main ehtaraam karta hoon,
Apni shayari mein 'uska' nahi, 'unka' likhta hoon.
©नीतिश तिवारी।
14 Comments
ओह, लाजवाब पंक्तियाँ। ।।।। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय नीतीश जी।।।।
ReplyDeleteरचना पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteवाह नीतिश जी, क्या खूब लिखा है ....रश्क इतना कि वो हमारे मैय्यत पर भी ना आए,
ReplyDeleteजनाज़े के बगल में ख़त का जवाब रखा था हमने।... संगदिलों को आइना दिखाती रचना
मैं आभारी हूँ कि आपको मेरी रचना पसंद आयी।
Deleteबेहतरीन शायरी...
ReplyDeleteधन्यवाद शारदा जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबढ़िया शायरी।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteउस बेवफ़ा का आज भी मैं एहतराम करता हूँ,
ReplyDeleteअपनी शायरी में 'उसका' नहीं, 'उनका' लिखता हूँ।.... क्या बात उम्दा
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।