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मेरे ज़ख्मों से तुम अनजान हो गए हो क्या,
जहालत की पहचान हो गए हो क्या,
मुझसे किए वादे तुम इतनी जल्दी भूल जाते हो,
तुम भी आजकल सियासत-दान हो गए हो क्या।
Mere zakhmon se tum anjaan ho gaye ho kya,
Jahalat ki pahchaan ho gaye ho kya,
Mujhse kiye waade tum itni jaldi bhool jate ho,
Tum bhi aajkal siyasat-daan ho gaye ho kya.
©नीतिश तिवारी।
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8 Comments
सार्थक रचना।
ReplyDeleteआने वाले नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
धन्यवाद सर। आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर बढ़िया नीतिश जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर।
Deleteअति उत्तम।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deleteबेहतरीन सृजन !!
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।