तेरी मोहब्बत के कर्ज को अदा कर देता,
मैं तेरी ख़ातिर दूर से ही सजदा कर लेता,
जो तुमने अपनी मजबूरियाँ बताई होती तो,
मैं खुद को तुझसे जुदा भी कर लेता।
Teri mohbbat ke karz ko ada kar deta,
Main teri khatir door se hi sajda kar leta,
Jo tumne apni majbooriyan batai hoti toh,
Main khud ko tujhse juda bhi kar leta.
तुझसे किए वादे का एहतराम था, इसलिए मेरे हाथ में जाम था,
सारे आशिक़ बुलाये थे महफ़िल में और पूरा सब इंतज़ाम था,
सबने तफ़सील से सुनाई अपने हिज़्र-ए-मोहब्बत की दास्तान,
तेरी ग़ैरहाज़री में तेरा भी ज़िक्र हुआ, और फिर दिल को बड़ा आराम था।
Tujhse kiye wade ka ehtaraam tha, isliye mere haath mein jaam tha,
Saare aashiq bulaye the mehfil mein aur poora sab intzaam tha,
Sabne tafseel se sunai apne hizr-e-mohbbat ki dastaan,
Teri gair hazaro mein tera bhi zikar hua,
Aur phir dil ko bada aaram tha.
©नीतिश तिवारी।
मेरी शायरी परफॉर्मेंस जरूर देखें।
10 Comments
लाजवाब।
ReplyDeleteआभार।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteवाह...बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteवाह!बहुत सुंदर अनुज ।
ReplyDeleteDhanywaad didi.
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।