फ़ोटो: लेखक महोदय के फेसबुक से।
"पूरी दुनिया में एक भी डॉक्टर ऐसा नहीं है जो दवा के साथ दिन में दो बार प्रेमपत्र लिखने के लिए कहे।
सब बीमारियाँ केवल दवा से कहाँ ठीक होती हैं!"
ऊपर लिखी हुई ये पंक्तियाँ, दिव्य प्रकाश दुबे जी की किताब इब्नेबतूती से हैं। इन्होंने चार और किताबें लिखी हैं और इब्नेबतूती इनकी पाँचवीं किताब है।
आप सोंच रहे होंगे कि मैं किताब का review क्यों लिख रहा हूँ? तो बात ऐसी ही कि जब अल्लू- गल्लू लोग किसी भी फ़िल्म का review कर सकते हैं तो मैं तो साहित्यकार हूँ। (अभी कोई मानता नहीं है इसलिए खुद ही उपाधि दे रहा हूँ), मैं तो किताब के बारे में लिख ही सकता हूँ।
अब दूसरा प्रश्न ये है कि क्या ये Sponsored post है? उत्तर है- बिल्कुल नहीं। दुबे सर ने इसके लिए एक रुपया भी नहीं दिया है और ना ही प्रकाशक Hind Yugm ने ये review लिखने के लिए कहा है।
दुबे सर ने अगर कुछ दिया है तो अपनी बहुमूल्य सलाह, आशीर्वाद और बेहतरीन साहित्य। हिन्दी को हिंदी भाषी ( बाकी भाषा वालों से तो तब उम्मीद करेंगे जब अपने हिंदी वाले ही हिंदी को पढ़ लें।) तक पहुँचाने के लिए बस यही प्रेरणा काफी है।
इब्नेबतूती में खास क्या है?
ये बिल्कुल वाज़िब सवाल है। ये किताब एक ऐसे बेटे की कहानी है जो अपनी माँ के जीवन में सिर्फ़ खुशियाँ देखना चाहता है। तब जबकि उसके पिता कब के उसे छोड़कर जा चुके हैं और वो भी अब साथ नहीं रहने वाला। ये किताब एक ऐसे माँ की कहानी है जिसने अपने बेटे की खुशी के ख़ातिर अपने खुशियों से समझौता तो कर लिया था लेकिन उसे कभी जगजाहिर नहीं होने दिया। कहते है कि हर रिश्ते में कुछ ना कुछ अधूरा रह ही जाता है। उसी अधूरे रिश्ते के पूरा होने की कहानी है इब्नेबतूती।
इब्नेबतूती क्यों पढ़ें?
माँ और बेटे के रिश्ते पर लिखी हुई ये अपने आप में एक अलग तरह की कहानी है जो खत्म तो कभी नहीं होती, हाँ माँ के त्याग और समर्पण का एक एहसास जरूर कराती है।
इब्नेबतूती क्यों ना पढ़ें?
मुझे तो ऐसी कोई वज़ह नज़र नहीं आती। अगर आपको पता लगे तो सूचित करिएगा।
निष्कर्ष।
मैंने कई किताबें पढ़ी हैं। रोज कुछ ना कुछ पढ़ता ही रहता हूँ। लेकिन ये किताब अपने आप में बिल्कुल अलग है। अलग इसलिए भी कि इस किताब का जो मूलभाव और उद्देश्य है वो बिल्कुल नया और अलग है।
एक माँ के अतीत में कहीं विस्मृत हो चुके भावनाओं को वर्तमान के सुनहरे वक़्त के साथ अपनी शब्दों की जादूगरी से लेखक महोदय ने बखूबी से व्यक्त किया है।
आज के लिए इतना ही। मिलते हैं फिर एक नए ब्लॉग पोस्ट के साथ। तब तक के लिए विदा दीजिए और पोस्ट अच्छी लगी हो तो शेयर कीजिए।
©नीतिश तिवारी।
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6 Comments
सुन्दर समीक्षा।
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteअच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।