दुश्मनी की चाहत और दोस्ती से तुम परहेज़ रखते हो,
मेरे लिए काँटे और अपने लिए फूलों की सेज रखते हो,
तुम्हारी ख़्वाहिश कि मैं ख़ाक हो जाऊँ दर्द-ए-तन्हाई में,
शायद इसलिए तुम चराग़-ए-नफ़रत बड़ी तेज़ रखते हो।
Dushmani ki chahat aur dosti se tum parhez rakhte ho,
Mere liye kaanten aur apne liye phoolon ki sej rakhte ho,
Tumhari khwahish ki main khaak ho jaun dard-e-tanhai mein,
Shayad isliye tum charag-e-nafrat badi tez rakhte ho.
मेरे आँसुओं के खरीदार तो बहुत मिले पर क़ीमत कोई लगा ना सका,
मैं बोली लगा रहा था अपने जज्बातों की, पर वो बेग़ैरत बाज़ार आ ना सका,
दावत-ए-सुख़न मिला था मुझे उसके सालगिरह की,
वो अपने यार के साथ पहली सफ़ में थे, मैं गीत कोई गा ना सका।
Mere aansuon ke khareedar toh bahut mile par keemat koi lagaa naa saka,
Main boli laga raha tha apne jajbaaton ki par wo begairat bazaar aa naa saka,
Dawat-e-sukhan mila tha mujhe uske saalgirah ki,
Wo apne yaar ke saath pahli saf mein the, main geet koi gaa naa saka.
©नीतिश तिवारी।
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7 Comments
सुन्दर और सार्थक मुक्तक।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteरचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteअति सुन्दर नितीश जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।