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Kya soch rahi ho weerane mein | क्या सोच रही हो वीराने में?
क्या सोच रही हो वीराने में?
किसी का दिल तोड़ दिया
क्या अनजाने में?
इश्क़ में अब तकलीफ़
क्यों हो रही है?
तुम्हारी तो जान बसती थी
उस दीवाने में?
मुरझाने के डर से तुमने,
कागज़ के फूल दिए थे।
खो गया वो किसी
तहख़ाने में।
सच्चे आशिक़ का दिल
नहीं तोड़ना चाहिए,
बरसों लगे थे तुम्हें
समझाने में।
©नीतिश तिवारी।
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6 Comments
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसच्चा आशिक़ मिलना ही दुर्लभ है...सच्चे आशिक़ का दिल वाकई में नहीं तोडना चाहिए
ReplyDeleteचलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम
बिल्कुल सही कहा आपने।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।