शब्द नहीं साथ दे रहे | shabd nahi saath de rahe.
बहुत दिनों से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन ना ही जज्बातों को महसूस कर पा रहा हूँ, ना ही शब्द साथ दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सब कुछ शून्य हो गया है। वर्तमान बुरा है और भविष्य बदत्तर। चारों तरफ निराशा है, लोग मर रहे हैं, फिर भी जीवन में एक आशा है। एक उम्मीद कि ये कठिन दौर गुजर जाएगा, एक उम्मीद कि वही सवेरा फिर से आएगा। पर वर्तमान अंधेरे ने कई जिंदगियाँ तबाह कर दीं। आज के इस दौर में कब किसके साथ क्या हो जाये, कोई नहीं जानता।
विनाश की इस घड़ी में,
कौन कैसे जीवन ढूँढे,
धागे इतने उलझ गए हैं,
अब बस ये जल्दी सुलझें।
अब बस ये जल्दी सुलझें।
महादेव सबकी रक्षा करें!
©नीतिश तिवारी।
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15 Comments
सच लिखा है आपने । पर अब आप और मैं क्या कोई भी क्या कर सकता है सिर्फ दूर से चुप चाप देखने के ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteमन को एकाग्र करिए।
ReplyDeleteजी सर।
Deleteउम्मीद पे दुनिया क़ायम है नीतिश जी। जी छोटा मत कीजिए। आपने अपने मन का हाल बेलाग कह डाला, यह हौसला भी कुछ कम नहीं।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteमहामारी पहले भी आती रही है पर मानव की जिजीविषा के आगे टिक नहीं सकती, समय बदलता रहता है, जितना हो सके हमें स्वयं को तथा अपने परिवार, समाज को स्वस्थ रखने में मदद करनी है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।
Deleteसच लिखा है
ReplyDeleteवाकई इन दिनों मन बहुत दुखी है
धन्यवाद।
Deleteयथार्थ दर्शाती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसब कुछ भविष्य में छिपा है।
आडियो बहुत मोहक।
आपका धन्यवाद।
Deleteसचमुच अभिव्यक्ति कुंठित हो गई है . यह भी एक रचनाकार की एक बड़ी यातना है .लेकिन लिख न पाने की व्यथा को लिखना भी एक रचना ही है .
ReplyDeleteजी। बिल्कुल सही।
Deleteमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।