परछाईयाँ लंबी होती जाती हैं,
रौशनी फिर मुहँ फेर लेती है,
साथी जो कभी रूठ जाए,
साँसे थम जाती हैं,
धड़कन रुक कर चलती है।
Parchhaiyan lambi hoti jati hain,
Raushni phir muhn pher leti hai,
Saathi jo kabhi rooth jaye,
Saanse tham jaati hain,
Dhadkan ruk kar chalti hai.
तुम चाहे मुझे भोला और नादान समझना,
गुजारिश है कि मुझ पर ही गुमान करना,
वो लम्हे जो साथ गुजारे थे सदा याद आएँगे,
कभी जो नज़र आ जाऊँ, मुझे बस तुम पहचान लेना।
Tum chahe mujhe bhola aur naadan samjhane,
Guzarish hai ki mujh par hi gumaan karna,
Woh lamhe jo saath guzare the sada yaad aayenge,
Kabhi jo nazar aa jaun, mujhe bas tum pahchan lena.
©नीतिश तिवारी।
18 Comments
बहुत ही बढ़िया सृजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteआपकी प्रत्येक अभिव्यक्ति मुझे अपनी-सी लगती है नीतिश जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है समय मिले तो जरूर पधारें।
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 02-05-2021) को
"कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।" (चर्चा अंक- 4054) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति । एक सलाह .... आप पूरी रचना के बाद रोमन में एक साथ डालें । दोनो जगह पढ़ने में तारतम्य नहीं बिगड़ेगा ।
ReplyDeleteआपके सलाह के लिए धन्यवाद। बहुत से लोग देवनागरी में नहीं पढ़ पाते हैं उनके लिए रोमन में लिखा है। अगले पोस्ट से पहले देवनागरी फिर रोमन में रचना पोस्ट होगी।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।