मुझे इस बात से कभी कोई शिकायत नहीं रही कि तुम मेरे पास नहीं हो। वास्तव में तुम मेरे कभी थे ही नहीं। हाँ, मैं हमेशा से तुम्हारा जरूर था। तभी तो तुम मेरी नींदों में थी, तुम मेरे सपनों में थी, तुम मेरी धड़कन में थी, तुम मेरे अपनों में थी। वही अपनापन आज भी बरकरार है। फर्क सिर्फ इतना है कि मेरा प्यार तुम्हारे लिए है पर तुम्हारा न जाने किसके लिए। सवालों के जवाब, ख्यालों का हिसाब और तड़पती मोहब्बत की आवाज सब खो गई। तनहाई ऐसी कि कोयल की आवाज भी गुम हो गई। धरती बंजर हो गई। नदियाँ प्यासी हैं। समंदर अपने पास नहीं बुला रहा। ये जीवन की कैसी आपाधापी है?
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