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Hotstar ki web series The Empire ka review.

Hotstar web series the empire review
Pic credit: google.




चिंतन चाहे इतिहास का हो या वर्तमान का.. मानव जाति की अगर अपनी ज़मीं उससे छिनती है तो वह अवश्य पलायन का रास्ता अख्तियार करता है फ़िर चाहे वो शरणागत के तौर पर हो या नई जमीन को अपना बनाने हेतू बहाये जाने वाले अपने खून पसीने की.. वो उससे पीछे नहीं हटता। चंद स्कवॉयर फ़ुट के लिये जब आजकल के सुपुत्र अपने पिता अथवा भाई के खिलाफ़ किसी भी प्रकार के षड्यंत्र अपनाने से गुरेज़ नहीं करते। तो सवाल जब पूरी सल्तनत { देश } का हो तो एक राजा का पीछे हटना.. उसकी साख और अहं को किसी भी तरह शोभा नहीं देता। 


Alex Rutherford's के बहुचर्चित उपन्यास Empire Of The Mughal - Raiders Of The North पर  बेस्ड डिज़्नी हॉटस्टार की हाल ही मे रिलीज़्ड ओटीटी वैबसीरीज़ 'The Empire' कुछ मायनों में बेहद खास बन पड़ी है। 


पता नहीं यह समाज मुझे कभी माफ़ करेगा या नहीं या शायद मुझे बेहद ही पिछड़े दर्जे का करार दे दिया जाये पर मुझे यह स्वीकार करने मे अपने दिलों दिमाग व ईमान मे किसी भी प्रकार का गुरेज़ नहीं कि मैने अभी तक 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' का एक भी एपिसोड नहीं देखा है। हां... एक ठीक-ठाक पाठक होने के नाते ज़रूर इस खूबसूरत किताब के हर पन्ने को अपने जहं मे उतार रखा है। जिसकी पटकथा व प्रेजेंटेशन किसी भी सूरत मे इस सीरीज़ के करीब नहीं। मै यहां उन सभी लोगों के दावों का खंडन करना चाहूंगा जो इसे भारतीय वर्जन का गेम ऑफ़ थ्रोन कह रहे हैं। 


हर फिल्म मेकर्स का अपना एक ऑरा व काम करने का तरीका होता है। और मेरे ख्याल से दोनों ही तरफ़ के लोगों ने अपनी अपनी काबिलियत के अनुसार अपनी मेहनत दी है। यहां लोगों को एक छोटी सी जानकारी देना चाहूंगा कि प्रोड्यूसर निखिल आडवानी के निर्देशन मे 'द एम्पायर' को असिस्ट कर रहीं इस वैबसीरीज़ की डॉयरेक्टर 'मिताक्षरा कुमार' इससे पहले संजय लीला भंसाली को बाजीराव मस्तानी व पद्मावत मे असिस्ट कर चुकी हैं। जिसका अनुभव 'द एम्पायर' मे सराहा जा रहा है। 


बाबरी मस्जिद अपवाद छोड़कर देखें तो भारतीय इतिहासकार एवं वर्तमान मे भारतीय हिंदू बाबर को ज्यादा घृणा की नज़रों से नहीं देखते.. क्योंकि उसने किसी हिंदू राजा से ज्यादा बड़े युद्ध नहीं किये। जैसा कि उनके पोते अकबर ने महाराणा प्रताप से किया। ऐसे बेहद ही नगण्य युद्ध हैं जिन्होंने बाबर के दामन को मैला किया हो.. और फिर राजनीती हर राजा के जीवन का एक अभिन्न अंग होती है। और उसमे सब जायज़ होता है। पहला सीज़न अभी इस वैबसीरीज़ की बिगिनिंग है एवं हुमायूं, अकबर अथवा औरंगजेब के किरदार आना शेष हैं यहां देखना दिलचस्प होगा कि तथ्यों को एतिहासिक द्रष्टिकोण के साथ सत्य रखा जाता है या फ़िर सक्सेस हेतू इसका ड्रामाटाईजेशन किया जाएगा ये आने वाला वक्त तय करेगा। 


किसी भी सफ़र की शुरूआत अगर कठिनाई और मुश्किलों से भरी हो.. तो वह आपको परिपक्व बनाती है और उस मंजिल तक आपको ले जाने में एक ऐसा साथी आपके साथ मे हो जिसे आपकी मेहनत व क़िस्मत दोनों पर यकीं हो तो सफ़लता के कीर्तिमान लिखना आसान हो जाता है। चौदह साल की बेहद कम उम्र मे जहिरुद्दीन मोहम्मद बाबर को अपने वालिद उमर शेख मिर्जा ( द्वितीय ) से मिला फ़रगाना { वर्तमान उज्बेकिस्तान } का तख्त ओ ताज तो वो ज्यादा समय तक अपने कब्जे मे नहीं रख सके। शैबानी खान जो उज़्बेक का ही एक खानाबदोश लड़ाका था, जिसने अपनी सेना की अकूत ताकत व योजनाबद्ध तरीके से बाबर की पारिवारिक कलह का फ़ायदा उठाते हुए उसके सलाहकार ख़ंबर अली के साथ मिलकर बाबर को उनकी रियायत से बाहर का रास्ता दिखाया। एवं मात्र तीन वर्ष के अंतराल पर पुनः अपने ही एक सिपहसालार की मदद से जीती हुई समरकंद रियासत को भी बाबर गवां बैठते हैं। और यहीं से शुरू होता है उनका अपने जीवन को संवारने का सिलसिला। 


बाबर के किरदार मे कुणाल कपूर ने दमदार व्यक्तित्व का चुनाव तो किया पर वो उसे पूरी तरह जस्टीफॉय नहीं कर सके। पर इमोशनल सैन्टीमेन्ट्स और बेहतरीन स्टोरीटैलिंग ने उन्हे संभाल लिया है। 


इशान दौलत अका नानी जान { शबाना आज़मी } एक बार फ़िर अपने अभिनय से लोगों के दिलो-दिमाग मे अपना असर छोड़ने मे कामयाब रहीं। उनकी कूटनीति व दूरगामी द्रष्टिकोण का परिणाम ही था जो उन्होने अपने बेटे के ऊपर पोते को चुना.. और मुगल अपनी सल्तनत को बरकरार रख सके। 


द्रष्टि धामी ने ख़ानज़ादा के रूप मे अपने सश्क्त अभिनय से सभी को प्रभावित किया एवं इतिहास मे भी बाबर की निज़ी ज़िंदगी व शाही फरमानों मे उसका एक महत्वपूर्ण रोल रहा। ऐसा कहा जाता है कि बाबर की वसीयत बाबरनामा के कुछ हिस्सों को उन्होंने स्वयं लिखा है। और हिंदुस्तान की सत्ता को काबिज करने का ख्वाब भी बाबर को अपनी बड़ी बहन ख़ानजादा से ही मिला। बाबर ने अपनी बहन को बादशाह बेगम की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया था। 


इस सीरीज़ मे कैमियो मे अगर किसी ने मुझे सबसे ज्यादा चौंकाया तो वो था आयाम मेहता का ऐतबार का किरदार। जिन्होंने पद्मावत देखी है वो जानते होंगे कि उन्होने ही पंडित राघव चेतन का किरदार निभाया था। हालांकि सीरीज़ मे उनका स्पेशल अपीरियंस उनका मेकअप ही है जो किन्नर के रूप मे ख़ानजादा की सेवक थीं.. जब शैबानी खान ने उन्हें अपने हरम मे रखा था। 

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वैबसीरीज़ के मुताबिक बाबर की पहली पत्नी और इतिहास के मुताबिक चौथी एवं हुमायू की मां माहम के रूप में सहर बाम्बा ने अपनी खूबसूरती व ममतामयी किरदार से दिलों मे प्यार जगाया है। जहां माहम को अपने शौहर बाबर की नीतियों मे पूर्ण विश्वास था.. वहीं इतिहास गवाह है कि हुमायू तथा अकबर के शासन में उन्होने अपनी काबिलियत और चतुराई से समस्त शासन की बागडौर अपने हाथों मे ले रखी थी। उनकी मर्जी व सलाह के बगैर खुद अकबर भी कभी कोई फ़ैसला नहीं लेते थे। अपने शांतिपूर्ण व खूबसूरत व्यक्तित्व के जानी जाने वाली माहम की ना जाने क्यों महारानी जोधाबाई से कभी नहीं निभा पाईं। 


नैगेटिव रोल मे भी शैबानी खान के रूप मे डिनो मौर्या ने अपने जीवन का सबसे शानदार प्रदर्शन किया है। उनके चरित्र मे इतना ग्रे शेड था कि पूरी स्टार कास्ट उनके आगे फ़ीकी पड़ गई। सीरीज़ के लेखक चाहे जो भी कहें पर इतिहासकार मानते हैं कि शैबानी खान समरकंद के तख्त पर कब्जे के लिये बल्कि ख़ानजादा की खूबसूरती व शख्सियत से प्रभावित होकर आया था। 


सीरीज़ के अन्य महत्वपूर्ण किरदार जैसे राहुल देव एज़ वज़ीर खान ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करने की कोशिश करी है। वहीं इमाद शाह अपने कासिम के रोल मे जमे नहीं। 


ओटीटी प्लैटफार्मस पर इस तरह की पेशकश बेहद ही प्रशंसा के योग्य है पर यह भी सच है कि जब आप इस तरह की एतिहासिक पृष्ठभूमि का चुनाव करते हैं तो चार चीज़ सबसे महत्वपूर्ण होती हैं। 


पहला तथ्य, 

दूसरा वी एफ़ एक्स, 

तीसरा स्क्रीनप्ले 

और चौथा सिनमैटोग्राफ़र। 


तथ्य से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की गई है पर इसे लार्जर दैन लाईफ़ बनाया जा सकता था। 


वी एफ एक्स इस सीरीज़ का कमजोर पक्ष है जिसपर उम्मीद की जा सकती है कि अगले सीज़न मे इस कमी को पूरा किया जाए। 


स्क्रीनप्ले और सिनमैटोग्राफ़र इस सीरीज के दो मजबूत स्तंभ हैं। जहां हर इमोशंस को लेखक व डॉयरेक्टर ने बेहद ही खूबसूरती से फिल्माया है वहीं सिनमैटोग्राफ़र ने भी अपनी मेहनत से हर तरह की कमीं को पाटने का काम किया है। पटकथा थोड़ी धीमी गति से चलने के बावजूद आपको बोर नहीं करती। 


इस तरह की सीरीज़ भविष्य मे बॉलीवुड के बढ़ते ग्राफ़ का जीता जागता सुबूत हैं। और ओटीटी के ओर बढ़ते कदमों का खूबसूरत आगाज़। ऐसी कोशिशें थमनी नहीं चाहिए। फिल्म निर्देशक, डॉयरेक्टर व सभी कलाकारों से अगामी सीरीज़ मे और बेहतरीन प्रदर्शन की आशा के साथ बेहद शुभकामनायें।


©हर्षित गुप्ता।

लेखक- हमनफ़स


 

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