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दिल को सुकून कभी कभी नहीं मिलता। फिर वो एक अनंत काल की यात्रा पर चल जाता है, सुकून की तलाश में। उसकी यात्रा में कोई साथी नहीं होता। शायद उसे डर लगा रहता कि कोई उसके सुकून में बाधा ना डाल दे। कोई ये ना कहने लगे कि मेरी वजह से तुम्हे सुकून मिला है। कोई अपना हक़ ना जताने लगे। यही तो इस दुनिया का दस्तूर है। छोटी छोटी बातों को लोग बढ़ा चढ़ाकर बोलते है। तिल का ताड़ बना देते हैं। दो लम्हा साथ क्या निभाया उसे सदियों का साथ बताने लगते हैं। वो ऐसा व्यवहार करते हैं मानों उनके बिना ना सुबह होगी और ना ही शाम।
पर दिल को तो सुकून चाहिए और वो मिलता है अनंत काल की यात्रा पर। सुकून मिलता है निर्वात में।
©नीतिश तिवारी।
6 Comments
वाह! अद्भुत पर सत्य।
ReplyDeleteनिर्वात!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04-10-2021 ) को 'जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह' (चर्चा अंक-4207) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर और प्रभावी रचना
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात,सटीक और मन को छूती हुई ।
ReplyDeleteवाह!वाह जी गज़ब 👌
ReplyDeleteसादर
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