मेरे कमरे में रौशनी नहीं है, लगता है शाम हो गई,
दरख़्तों और पर्दों की साज़िश सरेआम हो गई,
तीरगी को तलब है अपना मुक़ाम बनाने की,
खामखाँ इस चक्कर में रौशनी बदनाम हो गई।
Mere kamre mein raushni nahi hai, lagta hai shaam ho gayi,
Darakhton aur pardon ki sazish sareaam ho gayi,
Teergi ko talab hai apna muqaam banaane ki,
Khamkha iss chakkar mein raushni badnaam ho gayi.
मुझसे किए वादे से मुकरने का इरादा है क्या,
मैं तो उलझा था, वो सीधा-सादा है क्या,
अभी तो आये हो, अभी से जा रहे हो,
उससे आज ही मिलने का वादा है क्या।
Mujhse kiye wade se mukarne ka irada hai kya,
Main toh uljha tha, woh seedha-sada hai kya,
Abhi toh aaye ho, abhi se jaa rahe ho,
Usse aaj hi milne ka wada hai kya.
©नीतिश तिवारी।
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2 Comments
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद!
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