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Nazm- Meri Girvi Rakhi Sansen | नज़्म- मेरी गिरवी रखी साँसें।
अपनी साँसों को तुम्हारे पास
गिरवी रखके मैं समंदर की
ख़ाक छान रहा हूँ
अपनी प्यास बुझाने को
समंदर दूर भाग रहा है
रेत के टीले बन रहे हैं
दिल बंजर होता जा रहा है
धड़कनों को धड़कने के लिए
एक दस्तक की दरकार है
दरीचों से आ रही हवा के
झोंके के साथ तुम भी
आ जाओ ना
अब मेरी जान जा रही है
मेरी गिरवी रखी साँसों को
लौटा जाओ ना
दो साँसों को मिलाकर एक नयी
खुशबू का ईज़ाद करना चाहता हूँ
मैं तेरी मोहब्बत को अपने सर का
ताज करना चाहता हूँ
हसीन ख़्वाबों को मुक़्क़मल करने
की मेरी तमन्ना को अब
पूरा हो जाने दो
तुम आओ तो मैं फिर से
ज़िन्दा हो जाऊँगा
तेरे दिल की बस्ती का एक
बाशिंदा हो जाऊँगा
तेरे दिल की बस्ती का एक
बाशिंदा हो जाऊँगा।
©नीतिश तिवारी।
10 Comments
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर और हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
Deleteबहुत बहुत ही सुंदर भावों को शब्दों में पिरोते हो।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
सादर
धन्यवाद अनीता दी। आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।