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Kohre ki dhundh aur tum | कोहरे की धुंध और तुम।
कोहरे की धुंध में
कहीं तुम्हारी यादें
खो तो नहीं गयी हैं
मैं मौसम बदलने की
प्रतिक्षा कर रहा हूँ।
बाट जोह रहा हूँ
कि कब धूप निकले
और तुम अपनी
वही पुरानी चमक
बरकरार रखते हुए
मेरे पास दौड़ी
चली आओ।
तुम्हारी एक झलक
मिले तो फिर
प्यार का नया
मौसम शुरू हो।
©नीतिश तिवारी।
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10 Comments
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteAapka shukriya
Deleteअति सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।