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शब्द झूठे हो सकते हैं
मेरी स्वीकृति तो सत्य है
तुम कल मेरी थी
यही आज का तथ्य है
प्रेम हमारा परिपूर्ण था
अथाह सागर के जैसा
फिर छल ने कुछ गोते लगाए,
बिखर गया प्रवाह के जैसा
उस समय की गतिविधि को
दुर्व्यवहार का नाम मत दो
जो इच्छाएँ नहीं रुकी उन्हें
अत्याचार का नाम मत दो
प्रेम की नियति ऐसी थी
तुमको हमसे अलग होना था
सारा दोष मुझ पर मढ़कर
मुझे ही गलत कहना था
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
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