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वस्ल खत्म हुआ अब हिज़्र का दौर आना है,
ज़ख्म नया लेकिन दर्द वही पुराना है,
मैं मरहम की तलाश में फिर से भटकूँगा,
नहीं मिला तो इसी दर्द के सहारे रह जाना है।
Wasl khtm hua ab hizr ka daur aana hai,
Zakhm naya lekin dard wahi purana hai,
Main marham ki talash mein phir se bhatkoonga,
Nahi mila toh isi dard ke sahare rah jana hai.
कितने अरमानों से तुमसे मोहब्बत की थी,
मैंने तेरी वफ़ा की कितनी इज़्ज़त की थी,
बेवफ़ा होने में तुमने जरा भी वक़्त ना लगाया,
ख़्वाब देखने की क्यों मैंने जहमत की थी।
Kitne armano se tumse mohabbt ki thi,
Maine teri wafa ki kitni izzazat ki thi,
Bewafa hone mein tumne jara bhi waqt na lagaya,
Khwab dekhne ki kyun maine jahmat ki thi.
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद
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