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ये कैसा दौर है
कि तुम पास भी नहीं
और मुझमें साँस भी नहीं
तुम्हारी गैरमौजूदगी में
तड़प ने अपनी घुटन
की ज़ंजीर से मुझे
कैद करके रखा है
अब से पहले कभी
इतना तन्हा तो
ना हुआ था
मेरी जान, ख़ुद को
वक़्त दो, मुझे वक़्त दो
इससे पहले कि
तन्हाई की दीवार
इतनी लंबी हो जाए
कि उसमें मेरे और
तुम्हारे अरमानों का
क़त्ल हो जाये
तुम वापस आ जाओ
मैं ये सब देख ना सकूँगा
मैं तुझ बिन जी ना सकूँगा
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteइससे पहले कि
ReplyDeleteतन्हाई की दीवार
इतनी लंबी हो जाए
कि उसमें मेरे और
तुम्हारे अरमानों का
क़त्ल हो जाये
वक्त लो पर वक्त रहते तोड़ डालो ये तन्हाई की दीवार ।
बहुत सुन्दर सृजन।
बहुत शुक्रिया।
Deleteकाश कि वक्त रहते वो सुन लेता... तड़प को।
ReplyDeleteहाँ सही कहा आपने
Deleteबहुत बढियां सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद
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