तुम मेरी तारीफ़ के लिए अल्फ़ाज़ ढूँढते हो,
तुमने मेरे जज्बात को कभी पढ़ा ही नहीं,
हक़ जताने का तुम्हें बड़ा शौक था लेकिन,
तुमने कभी मेरे हालात को समझा ही नहीं।
मजबूरियाँ गिनाने में तो तुम उस्ताद थे,
बेचैनी सिर्फ़ मेरी बढ़ाते रहे उम्र भर,
मैं दूर सहरा में तुम्हें पुकारता रहा,
पर तुमने मेरी आवाज़ को कभी सुना ही नहीं।
Tum meri tareef ke liye alfaz dhoondhte ho,
Tumne mere jajbaat ko kabhi padha hi nahi,
Haq jatane ka tumhen bada shauk tha lekin,
Tumne kabhi mere haalat ko samjha hi nahi.
Majbooriyan ginane mein toh tum ustad the,
Bechaini sirf meri badhate rahe umar bhar,
Main door sahra mein tumhen pukarta raha,
Par tumne meri awaaz ko kabhi suna hi nahi.
©नीतिश तिवारी।
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