फिर मैंने अपनी धडकनों को रुकने के लिए कहा। वो इसलिए कि उसके कदमों की आहट धीमी पड़ती जा रही थी। उसके साँसों की खुशबू ने महकना बंद कर दिया था। पायल की झंकार और चूड़ी की खनक सुनाई नहीं दे रही थी।
जी हाँ, वो मुझसे दूर जा रही थी। मैं साँसे लेने की सोच रहा था, धड़कनों को थाम कर बैठा था। उसका यूँ दूर जाना और मेरा जिन्दा रहना, एक साथ मुमकिन नहीं था। हजारों सवाल इस शान्त दिमाग को परेशान कर रहे थे।
सवाल ऐसे जिनके जवाब आज तक मुझे मिले नहीं थे। सवाल ये कि जब उसे वफ़ा आती नहीं थी तो इतने करीब आने क्यों दिया? सवाल ये कि क्या वो इश्क़ के अंज़ाम से वाकिफ़ नहीं थी? सवाल ये भी कि उसने मेरी बेचैनी को दहशत का रूप क्यों दिया?
इन सभी सवालों के जवाब के इंतजार में मैं अकेले कमरे में कराह रहा था। जवाब अब नहीं मिलने वाले थे। वो दूर जा चुकी थी। अस्पताल के कमरे में मेरे जले हुए पैर की ड्रेसिंग करने नर्स आ चुकी थी। मैंने झूठी मुस्कान से उनका स्वागत किया।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
चार पैरा में कही शानदार व्यथा-कहानी ...वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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