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मुनाफ़े की नियत से मोहब्बत नहीं होता,
ये तो घाटे की तिजारत है संभल कर करना,
एहसासों का सौदा हुआ तो अब ग़म कैसा,
उसकी याद में जीना... या फिर मर जाना।
Munafe ki niyat se mohabbat nahi hota,
Ye toh ghate ki tijaarat hai sambhal kar karna,
Ehsason ka sauda hua toh ab gham kaisa,
Uski yaad mein jeena ...Ya phir mar jana.
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
वाह।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।