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Mujhe Mere Mehboob Ki Tasveer Dekhni hai | मुझे मेरे महबूब की तस्वीर देखनी है।
उसी दौर का ये ख़्वाब था
जब मेरे नसीब में लिखा
तेरा साथ था
मैं तन्हा जो होता
एक पल के लिए भी
तुम भी बेचैन तो
होती ही थी
समय इस बात का
गवाह था
उसी दौर का ये ख़्वाब था।
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ख्वाहिशों का मेला था
पर मुझे अपने जमीर
का सौदा मंजूर ना था
और तुम बेगैरत
हमारे इश्क़ की
कीमत देने चले थे।
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फलक को पैगाम भेजा है
चाँद को बादल में ना छुपाए
मुझे मेरे महबूब की
तस्वीर देखनी है।
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मेरे अंदर का पुरुष
उतना कठोर नहीं है
जितना समाज ने
मान लिया है
और मेरा दुर्भाग्य ये कि
मैं इस बात को
साबित भी नहीं कर सकता।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
हृदयस्पर्शी भावों को दर्शाती अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
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