इश्क भी है और बेपरवाह भी हूँ,
सुकून भी है और तबाह भी हूँ,
बड़ी तबियत से क़त्ल हुआ मेरे इश्क़ का,
मैं मुज़रिम भी हूँ और गवाह भी हूँ।
Ishq bhi hai aur beparwah bhi hoon,
Sukoon bhi hai aur tabah bhi hoon,
Badi tabiyat se qatl hua mere ishq ka,
Main muzrim bhi hoon aur gawah bhi hoon.
मुझे काली घटा का शोर सुनना पसंद नहीं,
अगर बरसना है तो खुलकर बरसो।
बेवफ़ाई करने की इतनी जल्दी क्यों थी?
तड़पना है तो अब खुलकर तड़पो।
Mujhe kali ghata ka shor sunna pasand nahi,
Agar barasna hai toh khulkar barso.
Bewafai karne ki itani jaldi kyun thi?
Tadapna hai toh ab khulkar tadpo.
©नीतिश तिवारी।
6 Comments
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 04 अक्बटूर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।