बिहार की सर्द रातों में, जहाँ ठंडी हवाएँ पुरानी लोकगाथाओं की सरगम बिखेरती थीं, वहीं मैं रहता हूँ—एक कवि। दिन में एक रचनाकार, एक सपनों का सौदागर और सफलता की राह बनाने वाला। लेकिन रात में—जब दुनिया खामोश हो जाती और सितारे भी मेरी ओर झुककर सुनने लगते—मैं कुछ और बन जाता हूँ।


मुझे हमेशा से लगता था कि मेरी शायरी सिर्फ़ लफ़्ज़ नहीं, जादू है।


एक ठंडी शाम, जब मैं खिड़की के पास बैठा था, हाथ में कलम थी और दिल में बेइंतहा दर्द, मैंने एक ऐसी ग़ज़ल लिखी जो सिर्फ़ शब्द नहीं, एक सिहरन थी। हर लफ्ज़ में तड़प थी, हर मिसरा मानो किसी के दिल की धड़कन से बंधा था। ग़ज़ल पूरी करने के बाद मैंने आख़िरी शेर हवा में बुदबुदाया—


"समझाया था कि मोहब्बत अधूरी छोड़ दो, अब देखो... तुम्हारे ख्वाब भी बिखर गए।"


और फिर... कुछ अजीब हुआ।


अगली सुबह, मेरे पास अनजान लोगों के संदेशों की बाढ़ आ गई। किसी ने कहा कि उन्होंने यह शेर अपने सपने में सुना था—तीन दिन पहले। दिल्ली की एक लड़की ने दावा किया कि ये शब्द उसके ज़ेहन में बरसों से थे, पर वह उन्हें पहली बार पढ़ रही थी। लखनऊ का एक शख्स हैरान था कि वही पंक्तियाँ जो उसने कभी किसी सूने पल में सोची थीं, अब मेरी कलम से निकली थीं।


मैं मुस्कुराया। मैं जानता था कि कविता सिर्फ़ लिखने की चीज़ नहीं, महसूस करने की चीज़ होती है। हो सकता है, मेरे शब्दों ने समय की सीमाओं को लांघ दिया हो—हो सकता है, मेरे अशआर पहले से ही कहीं मौजूद थे, बस काग़ज़ तक आने का रास्ता ढूँढ रहे थे।


कोई नहीं जानता कि ये सिर्फ़ इत्तेफ़ाक था या कोई अनदेखी ताकत। लेकिन एक बात तो तय थी—

मेरी शायरी सिर्फ़ काग़ज़ तक सीमित रहने वाली नहीं थी। वह हवा में घुलकर, दिलों में उतरने के लिए बनी थी।


©नीतिश तिवारी।